अल फलाह यूनिवर्सिटी के आतंकी लिंक्स के खुलासे के बाद यूजीसी तैयार कर रही है नेशनवाइड क्रैकडाउन

अल फलाह यूनिवर्सिटी के आतंकी लिंक्स के खुलासे के बाद यूजीसी तैयार कर रही है नेशनवाइड क्रैकडाउन
नव॰ 23 2025 प्रदीप विश्वकर्मा

फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी के आतंकी लिंक्स के खुलासे के बाद, शिक्षा मंत्रालय ने देशभर के निजी विश्वविद्यालयों पर कड़ी निगरानी के लिए एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) और नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (एनएएसी) को अब एक ऐसा निगरानी प्रणाली बनाने का निर्देश दिया गया है, जो किसी भी शिक्षा संस्थान में आतंकवाद के लिए जगह न बनने दे। ये फैसला न सिर्फ एक विश्वविद्यालय के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा प्रणाली के गहरे अंदर छिपे दरारों को भरने की कोशिश है।

कैसे बना एक विश्वविद्यालय आतंकी नेटवर्क का बेस?

अल फलाह यूनिवर्सिटी का नाम सिर्फ एक बम विस्फोट के साथ नहीं, बल्कि एक लंबे समय तक चले आ रहे आतंकी संगठनों के साथ जुड़ाव के कारण अब देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। मिर्जा शदाब बाग, जो 2007 में यहाँ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन में बी.टेक किया, इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के एक वांटेड आतंकवादी था। उसके बाद से यहाँ के डॉक्टरों का नाम बार-बार आतंकी कार्यक्रमों में आया।

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की जाँच में पता चला है कि 26 लाख रुपये की रकम आतंकी विस्फोटों के लिए जमा की गई थी। इसमें डॉ. मुजम्मिल ने ₹5 लाख, डॉ. आदिल अहमद राठोड ने ₹8 लाख, डॉ. मुफ्फर अहमद राठोड ने ₹6 लाख, डॉ. उमर ने ₹2 लाख और डॉ. शाहिना शाहिद ने ₹5 लाख दिए। ये पैसे अमोनियम नाइट्रेट और हथियार खरीदने के लिए इस्तेमाल हुए।

क्या था वो फ्रैड जिसने बनाया आतंकी फंडिंग का रास्ता?

यहाँ का विवाद सिर्फ आतंकवाद तक सीमित नहीं है। जवाद अहमद सिद्दीकी, अल फलाह ग्रुप के चेयरमैन, पहले ही ₹7.5 करोड़ के धोखाधड़ी के मामले में जेल गए थे। उन्होंने झूठे दस्तावेजों का इस्तेमाल करके शेयर खरीदे और पैसे अपने निजी खातों में भिजवाए। अब एनएडी ने उन्हें 13 दिनों के लिए गिरफ्तार किया है।

एनएडी के रेड में दिल्ली के ओखला में यूनिवर्सिटी के हेडक्वार्टर और ट्रस्टीज के घरों में 9 शेल कंपनियाँ मिलीं — सभी एक ही पते पर, कोई वास्तविक व्यवसाय नहीं। ये शेल कंपनियाँ आतंकी फंडिंग के लिए बैंक ट्रांजैक्शन छिपाने का काम कर रही थीं।

अनुमति न होने पर भी कैसे मिले 10 करोड़ के स्कॉलरशिप?

यहाँ की सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी के पास यूजीसी का 12(B) स्टेटस नहीं था — जो केंद्रीय फंडिंग के लिए जरूरी होता है। फिर भी, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 2016 में ₹10 करोड़ के स्कॉलरशिप दिए। 2015 में 2,600 छात्रों के लिए ₹6 करोड़ और एआईसीटीई से ₹1.10 करोड़ की सहायता भी मिली।

इसके अलावा, राज्य के निजी विश्वविद्यालय का दर्जा 2014 में हरियाणा सरकार ने दिया था। इसके बावजूद, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान आयोग (एनसीएमईआई) ने बार-बार इसकी अनुमति दे दी — जबकि उसकी एक्रेडिटेशन की स्थिति संदिग्ध थी।

कश्मीरी छात्रों को बनाया गया आतंकी रूट

कश्मीरी छात्रों को बनाया गया आतंकी रूट

एनआईए की जाँच में एक और डरावना तथ्य सामने आया: डॉ. मुजम्मिल और डॉ. उमर ने जैश-ए-मोहम्मद के निर्देशों के तहत कश्मीरी छात्रों को रेडिकलाइज करना शुरू कर दिया। उन्होंने एक टेलीग्राम ग्रुप बनाया, जिसमें सिर्फ कश्मीरी छात्र शामिल थे। यह ग्रुप एक अलग नेटवर्क बन गया, जहाँ आतंकवादी विचारधारा का बीज बोया जा रहा था।

कैंपस के लैब, अस्पताल, कश्मीरी छात्रों के रिकॉर्ड और सुरक्षा गार्ड्स की जानकारी अब जाँच का हिस्सा है। एक छात्र के माता-पिता ने वाइस-चांसलर को एक पत्र लिखा — "हमारे बच्चे का भविष्य क्या होगा?"

क्यों बना यह विश्वविद्यालय आतंकी लक्ष्य?

इस बात को समझने के लिए, आपको याद रखना होगा कि निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी का कोई असली नियम नहीं था। बहुत से संस्थान नाम तो विश्वविद्यालय के हैं, लेकिन वास्तव में वे बिजनेस या फंडिंग के लिए बनाए गए हैं।

अल फलाह यूनिवर्सिटी ने एक ऐसा निकाय बना दिया जहाँ शिक्षा के नाम पर आतंकवाद, धोखाधड़ी और नकली एक्रेडिटेशन चल रहा था। इसके बाद कई डॉक्टर पहले भी दिल्ली ब्लास्ट केस में गिरफ्तार हो चुके हैं। यह दोहराव क्यों हो रहा है? क्योंकि नियम अधूरे हैं।

अब क्या होगा? यूजीसी की नई नीति

अब क्या होगा? यूजीसी की नई नीति

अब यूजीसी और एनएएसी एक नई नीति बना रहे हैं — जिसमें हर निजी विश्वविद्यालय की वार्षिक ऑडिट, फंड ट्रैकिंग, छात्र रिकॉर्ड्स की वेरिफिकेशन और टीचिंग स्टाफ की बैकग्राउंड चेक जरूरी होगी। कोई भी संस्थान अब अल्पसंख्यक ग्रांट नहीं पा सकेगा जब तक उसका एक्रेडिटेशन और फंडिंग का स्रोत स्पष्ट न हो।

कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह बदलाव बहुत देर से आया है। लेकिन अगर यह असली नियमों के साथ लागू होता है, तो यह भारत के शिक्षा प्रणाली के लिए एक बड़ा बदलाव हो सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अल फलाह यूनिवर्सिटी के छात्रों को क्या होगा?

अभी तक कोई छात्रों के डिग्री रद्द करने का आधिकारिक फैसला नहीं हुआ है, लेकिन यूजीसी और एनएएसी अब उनके रिकॉर्ड्स की जाँच कर रहे हैं। अगर किसी छात्र का एक्रेडिटेशन झूठा पाया जाता है, तो उसकी डिग्री की वैधता पर सवाल उठ सकता है। अधिकारी अभी इस पर निर्णय लेने के लिए एक विशेष टीम बना रहे हैं।

क्या यह मामला दूसरे निजी विश्वविद्यालयों तक फैल सकता है?

हाँ। एनएएसी की अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, देश में 37% निजी विश्वविद्यालयों के पास यूजीसी का 12(B) स्टेटस नहीं है, लेकिन वे फिर भी सरकारी ग्रांट प्राप्त कर रहे हैं। इसलिए यूजीसी अब हर निजी विश्वविद्यालय की आर्थिक लेन-देन, शिक्षकों के पृष्ठभूमि और छात्रों के रिकॉर्ड्स की ऑडिट शुरू करेगी।

आतंकी नेटवर्क क्यों विश्वविद्यालयों को टारगेट करते हैं?

विश्वविद्यालय छात्रों के लिए एक अच्छा रूट हैं — युवाओं को रेडिकलाइज करना आसान होता है, और अधिकारियों की निगरानी कम होती है। अल फलाह में टीचिंग स्टाफ के बीच आतंकी नेटवर्क था, जिसने छात्रों को नियंत्रित किया। यह एक ऐसा फॉर्मूला है जिसे अन्य संस्थानों में भी देखा जा सकता है।

क्या एनसीएमईआई के फैसले गलत थे?

हाँ, एनसीएमईआई के कई फैसले अब सवाल के अधीन हैं। इस विश्वविद्यालय के पास एक्रेडिटेशन नहीं था, फिर भी उसे अल्पसंख्यक ग्रांट मिले। अब आयोग की अपनी जाँच शुरू हो गई है। यह एक बड़ा असफलता का मामला है — जहाँ नियमों को नजरअंदाज करके फंडिंग दी गई।

यूजीसी की नई निगरानी कब लागू होगी?

यूजीसी ने अगले 60 दिनों में एक ड्राफ्ट नीति जारी करने का लक्ष्य रखा है। इसके बाद 120 दिनों में सभी निजी विश्वविद्यालयों को नए नियमों के अनुसार अपनी फाइलें जमा करनी होंगी। जो संस्थान नियम नहीं मानेंगे, उनकी फंडिंग रोक दी जाएगी।

क्या यह मामला भारत में शिक्षा प्रणाली को बदल देगा?

अगर यह निगरानी असली मतलब से लागू होती है, तो हाँ। इससे पहले निजी विश्वविद्यालयों को नियमों का खुला अवसर मिल रहा था। अब एक नया नियम बन रहा है — जिसमें विश्वविद्यालय का नाम नहीं, बल्कि उसकी जिम्मेदारी और पारदर्शिता ही निर्णायक होगी। यह भारत की शिक्षा की आत्मा को बचाने का एक अवसर है।