एशेज़: भारत में एशेज़ के बारे में सब कुछ, जानकारी और अपडेट

जब बात आती है एशेज़, एक ऐसा सामाजिक और कानूनी मुद्दा जो शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में लोगों की दिनचर्या और सुरक्षा को प्रभावित करता है, तो ये सिर्फ एक कुत्तों का मुद्दा नहीं होता। ये एक ऐसा सवाल है जिसमें पशु अधिकार, नागरिक सुरक्षा, स्थानीय प्रशासन और कानून की भूमिका सब मिल जाती है। भारत में एशेज़ के मामले दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों में तेजी से बढ़ रहे हैं, और इनमें से कई ऐसे हैं जहां लोग डर के साथ घर से बाहर निकलते हैं।

एशेज़ के साथ जुड़े आवारा कुत्ते, जो अक्सर खाने के लिए या बचाव के लिए लोगों के आसपास घूमते हैं, के मामले अब सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मुद्दा बन गए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल जैसे लोग शेल्टर और डॉग पाउंड की मांग कर रहे हैं, जबकि पशु अधिकार समूह विस्थापन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी 5,000 कुत्तों को पकड़ने का आदेश दिया है, लेकिन इसका असर क्या हुआ? क्या ये कार्रवाई लोगों को सुरक्षित कर रही है, या बस एक दिखावा है? ये सवाल अभी भी जवाब का इंतजार कर रहे हैं।

एशेज़ के साथ जुड़ी दूसरी बड़ी बात है कुत्ता काटने के मामले, जो अक्सर बच्चों और बुजुर्गों को निशाना बनाते हैं। नोएडा, गुड़गांव और दिल्ली के कुछ इलाकों में इन मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। लेकिन क्या हम इसे सिर्फ कुत्तों की गलती मान सकते हैं? या ये एक ऐसी अस्थायी व्यवस्था का परिणाम है जहां शहरी नियोजन ने पशुओं को बाहर धकेल दिया है? इसके लिए जवाब सिर्फ एक कानून या पुलिस की एक अभियान से नहीं मिलेगा।

इस लिस्टिंग में आपको एशेज़ से जुड़े सभी पहलुओं की खबरें मिलेंगी — कानूनी फैसले, सरकारी नीतियां, लोगों की आवाजें, और उन लोगों की कहानियां जिन्होंने इस मुद्दे को अपनी जिंदगी में महसूस किया है। कुछ लेख विजय गोयल जैसे नेताओं की मांगों पर चर्चा करते हैं, तो कुछ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का विश्लेषण करते हैं। एक लेख तो यही बताता है कि एशेज़ के बारे में हम क्यों इतने चुप रह गए हैं। ये सब आपको एक अलग नजरिया देगा — न केवल एक कुत्ते के बारे में, बल्कि हमारी समाज के बारे में।

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जॉफ़्रा आर्चर और काइल जैमीसन दोनों ही चोटिल, इसलिए इंग्लैंड एशेज़ की तैयारी को प्राथमिकता दे रहा है, जबकि न्यूज़ीलैंड को तेज़ बॉलर बदलने पड़ेंगे।

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